Thursday, August 14, 2008

स्वतंत्र भारत के साठ साल

राष्ट्र ध्वजा फहराती जाए, सरस्वती की वीणा गाये।
भारत माता कि गोदी में स्वर्ग उतर कर आए, की ये धरती अमर धाम बन जाए॥

... बचपन में गाया करता था, बस इतना सा ही याद है, अगर कुछ और आया स्मृति पटल पर तो यहाँ टंकित करूंगा।


Thursday, July 24, 2008

पांचवी कक्षा की सीख

करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान॥

कुछ धुंधला सा याद है, गुरु श्री Y. N. Singh ने पांचवी कक्षा में एक अध्याय पढाया था। ऊपर की दो पंक्तियाँ नियत प्रयास और उसके फल का प्रतीक है। आज भी उनकी वाणी मेरे कानों में गूंजती है और उनकी याद मेरे चित्त पर स्थिर है। उनकी देख रेख में जो हिन्दी मैंने सीखी है, ये ब्लॉग उसका एक प्रयोग है। इस ब्लॉग में मैं भिन्न तरह की चीज़ें लिंखूंगा। पन्द्रह साल से ज़्यादा हो गए हैं हिन्दी में कुछ भी लिखे हुए, कोशिश करूंगा की व्याकरण की गलतियां ना हो।

गुरु को शत: शत: नमन करते हुए इस ब्लॉग का श्रीगणेश।